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सफर - मौत से मौत तक….(ep-6)

आज नंदू और उसके पिताजी नंदू के लिए लड़की देखने  गए थे।

नंदू, उम्र बाइस साल…… हट्टा कट्टा मेहनती लड़का….उम्र के हिसाब से खूबसूरत भी…. थोड़ा साँवला हो गया था धूप में घुमने से लेकिन सावलांपन उसपर जच रहा था। चिंतामणि के चेहरे में चिंता की लकीरों के रूप में झुर्रियां थी, और कमजोरी भी, उसकी बस एक ही ख्वाहिश और एक ही सपना था नंदू की शादी उसके जीते जी हो जाये बस……
ये सपने बहुत अजीब होते है, बचपन में अच्छे और सुंदर खिलौने अपने पास होने के सपने देखने से इनकी शुरुआत होती है….फिर थोड़े बड़े हुए पढ़ाई लिखाई करने लगो तो अच्छे मार्क्स से पास होकर पढ़ लिखकर कुछ कर दिखाने के सपने, धीरे धीरे बड़े हुए तो डॉक्टर इंजीनियर बनने के सपने, जिन्हें पूरा करने के लिए लगन और अर्थव्यवस्था ठीक हो तो शायद बन भी जाए, लेकिन अगर पढ़ लिख ना सको, आर्थिक दंगी हो तो पढ़ाई लिखाई किनारे छोड़कर चार पैसे कमाने के सपने, और अगर चार पैसे कमाने लगे तो फिर सपनो में सिर्फ पैसे ही आते है, और बाकी सारे सपने सिमटने लगते है और शुरुआत होती है एक नए सपने की, चाय बनाकर पिलाने वाली, खानां पकाने वाली के सपने, मेरा मतलब सुंदर सी बीवी के सपने, और एक दिन जब ये सपना भी पूरा हो जाये तो फिर सपनो का रुख बदल जाता है,  एक सुंदर से बच्चा, उसकी पढ़ाई, उसके शौक पूरा करने के सपने, और सबसे बड़ा सपना की अपने बच्चे का सपना पूरा कर सकूँ………फिर उसके शादी के सपने…… कुल मिलाकर सपनो का कोई अंत नही है। सपने पूरे हो या ना हो ये बदलते रहते है एक उम्र के बाद इनमें बदलाव आते रहते है।

चिंतामणि का सपना भी ऐसा ही था, नंदू के बाकी सपने तो कभी पूरा कर नही सका लेकिन कम से कम उसको एक ख्याल रखने वाली तो दे दूं, मैं और कौशल्या कब तक उसके साथ रहेंगे।

नंदू और चिंतामणि दोनो बैठे थे।
नंदू भी आज सपने देखने लगा था….एक सुंदर सी कन्या चाय लेकर आएगी थोड़ा सरमायेगी….कैसी दिखती होगी वो….तारीफ तो बहुत सुनने को मिल रही थी, क्या सच मे वैसी ही होगी जैसा माँ बाबूजी बता रहे थे।

चिंतामणि किसी के कहने पर यहां आया था, लड़की वालों को वो भी नही जानता था…. मोहन लड़की के पिताजी ने उन दोनों को बिठाया और खुद उनके साथ बैठकर बातचीत शुरू की थी।

"और तबियत कैसी है आपकी, नारायण जी बता रहे थे आपकी तबियत खराब थी" मोहन ने चिंतामणि से कहा,

नारायण उन दोनों का बिचौलिया था, जो दोनो को जानता था….लेकिन आज वो खुद आ नही सका। उनकी मीटिंग फिक्स करके खुद कही चला गया था।

"तबियत तो क्या बताए, बस जब तक जी रहे है ऐसी ही रहेगी, दवाईओ पर जान अटकी पड़ी है" चिंतामणि ने कहा।

"दवाई ठीक से लेते रहो और अटकाकर रखो इस जान को, अभी बहुत लंबी है जिंदगी, जिंदगी कौन सा बार बार मिलती है" मोहन बोला।

"बात तो ठीक है…. तकलीफ कुछ नही होती, बस अगर मधुमेह की समस्या है, परहेज और दवाई दोनो चलती है, समस्या ज्यादा हो जाती है तो पैर दर्द करने लगते है। " चिंतामणि ने कहा।

"हाँ तो इसमे तो मीठा बिल्कुल नही खाना चाहिए…. आप मीठा तो नही खाते ना…." मोहन ने कहा।

"अब बिल्कुल बन्द कैसे कर सकते है…. हाँ तीन टाइम की चाय अब दो टाइम ही कर दी…… " चिंतामणि ने कहा।

मोहन ने अपनी पत्नी को आवाज देते हुए कहा- "गंगा….ओ गंगा…. एक  चाय की गिलाश में चीनी कम ही डालना…. भाईसाहब को ज्यादा मीठा नही देना  है"

अंदर से आवाज आई- "ठीक है बाबूजी……"
ये मीठी सी आवाज थी चम्पा की….मोहन की सबसे छोटी लड़की चंपा…. वैसे मोहन के चार लडकिया दो लड़के थे।
तीन लड़कियों की शादी हो चुकी थी और लड़के अभी दोनो चंपा से छोटे थे, इसलिए उनकी पढ़ाई चलती थी,जो आज भी स्कूल गए हुए थे।

आवाज सुनकर ही नंदू मस्त मगन हो गया, उसकी तो आवाज सवारियों को आवाज मार मारकर भारी हो गयी थी,   उस वक्त सिर्फ दो लोगो की आवाज भारी थी, एक नंदू की और एक अमिताभ वच्चन की,  नंदू की शादी तक अमिताभ वच्चन उभरते हुए कलाकार के रूप में आ रहे थे, जो रेडियो में जॉकी का काम कर रहे थे…… नंदू स्टेशन में लगे रेडियो सुनता था तो अक्सर किसी अमित नाम का लड़का अपनी भारी आवाज और शब्दों के तारम्यता से लोगो की भीड़ इक्कठा कर देता था, शेरो शायरी से प्रोग्राम शुरू होता और फिर गाने बजाता था। नंदू भी कुछ उस तरह का काम करना चाहता था जिसे सब लोग सुने, लेकिन शायद वो लोगो को स्टेशनों के नाम और रिक्शे की घंटी की आवाज ही सुनाने के लिए जन्म लिया था।

मोहन ने नंदू के पिताजी से एक सवाल किया कि- "आपका बेटा काम क्या करता है, नारायण जी से बहुत तारीफ सुनी है, बहुत ही जिम्मेदार और खुद्दार है आपका लड़का….घर की सारी जिम्मेदारी इसके पास है।"

"जी तारीफ तो सही सुनी है…. मुझे कभी कोई तकलीफ होने ही नही दी इसने…. सब कुछ अपने दम पर ही करता है, अपनी दो बहनों की शादी भी इसने ही कि और अब खुद की शादी भी खुद के बल बूते पर कर रहा है…."  चिंतामणि ने कहा।

"नौकरी क्या करते हो बेटा" मोहन ने अब डायरेक्ट नंदू से ही पूछा।

अब नंदू थोड़ा सहम गया, उसको ये कहने में शर्म महसूस होने लगी कि वो एक रिक्शा चालक है, भले ही रिक्शे से उसकी आजीविका ठीक से चल जाती थी, लेकिन फिर भी अजीब लग रहा था, लेकिन सच्चाई छिपाकर भी क्या करता, हीम्मत करके बोल ही पड़ा।

  "जी मेरा अपना काम है, अपना रिक्शा है और मेरे कमाई का जरिया वही है। मैं रिक्शा चलाता हूँ।" नंदू बोला ही था कि चाय लेकर चम्पा आ खड़ी हुई।
नंदू के दिल को एक झटका से लगा….क्योकि जितना सुंदर नाम था उतनी ही सुंदर काया थी, वो पलके झुकाए खड़ी थी। उस वक्त घर मे टेबल की सुविधा नही थी, इसलिए सबको चाय हाथ मे थमाया जाता था, स्टाइल के प्यारे और नए गिलास में आधे से थोड़ा ऊपर तक भरी हुई चाय जिसमे से अदरक की खुशबू दूर तक आ रही थी, नंदू ने कभी अदरक वाली चाय नही पी थी, उसे वो खुशबू चाय से नही चम्पा से आती महसूस हुई….वो उस खुशबू को सांस में भरते हुए मन ही मन बोला - "मेरी तरफ से तो हाँ है"
सबने चाय का एक एक गिलास उठाया……और खाली प्लेट को लेकर अंदर चली गयी।

नंदू को चाय की चुस्की लेते हुए सोचने लगा - "अरे चाय में भी चंपा का स्वाद आ रहा"

नंदू अंकल हँसते हुए बचपन वाले नंदू से बोला- "अरे बेवड़े….चाय में चम्पा का स्वाद नही अदरक का स्वाद आ रहा है, और वो खुशबू चम्पा से नही चाय से आ रही है….एक ही स्टेशन से दस पैसे की चाय पियेगा तो ऐसा ही होगा, कभी किसी ढाबे में पीना चाय, तब पता लगेगा"

यमराज ने नंदू अंकल की बात सुनी उसे तो समझ ही नही आया नंदू ये सब क्यो बोल रहा है, लेकिन उसे छोटा नंदू और चंपा की जोड़ी बहुत अच्छी लगी, और मन ही मन तो छोटा नंदू भी चंपा पर फिदा हो चुका था।
यमराज ने नंदू अंकल से पूछा-" क्या हुआ लड़की पसंद आ गयी है या नही?"

"लड़की तो बहुत पसंद आई है, लेकिन उसे मैं पसंद नही आया" नंदू ने कहा।

"लेकिन क्यो?" यमराज ने फिर से सवाल किया।

नंदू ने यमराज का हाथ पकड़ा और उस कमरे में ले गया जहां चम्पा और उसकी माँ गंगा बात कर रहे थे

"बेटा खराबी क्या है लड़के में….ठीक तो है लड़का" गंगा बोली।

"माँ वो रिक्शा चलाता है, एक रिक्शे वाली से कैसे मैं शादी कर लुंगी….मुझे नही करनी तो नही करनी उस रिक्शे वाली से शादी" चंपा ने कहा।

"तो तुझे क्या सरकारी नौकरी वाला लड़का मिलेगा….बेटा यही सही उम्र है शादी की, सतरहवां खत्म होकर अठहरवाँ लगने वाला है तुझे…. पिछली बार भी तूने मना किया था, तेरे बाबूजी कितना डाँट रहे थे हमे….छोटी छोटी करके सिर पर चढ़ा दिया है तुझे, बाकी तीनो की भी तो शादियां हुई है" गंगा बोली।

"इससे अच्छा तो पिछले वाला ही था, होटल में बर्तन भी धोता था तो अंदर अंदर का काम था, लेकिन ये तो सड़क सड़क घूमेगा….मेरी सहेलियां पूछेंगी तो क्या कहूंगी उन्हें….रिक्शे वाली से शादी कर रही हूँ" चंपा बोली।

"पता नही कौन से जन्म की दुश्मनी ले रही है तू, अभी तेरे दो भाई है, क्या असर पड़ेगा उनपर….तू है कि समझती नही….तेरे बाबूजी फर गुस्सा करेंगे"  गंगा बोली।

"मुझे कोई परवाह नही है माँ…. मैं किसी से भी शादी करूँगा, इस रिक्शे वाले से नही" कहकर चंपा बिस्तर पर लेट गई।

गंगा भी बाहर आकर उन सबके साथ चर्चा में शामिल हो गयी।

चिंतामणि और मोहन के बीच सारी बात हो चुकी थी, और नंदू ने भी हामी भर दी…

गंगा ने मोहन को अकेले में चार बातें बोली तो मोहन के चेहरे का भाव ही बदल गया….शायद चम्पा की बात से गुस्सा हो गया था, लेकिन फिर जब वो वापस चिंतामणि के पास आया तो मुस्कराते हुए बोला- "बाकी बात तो अब होती रहेगी, आजकल बच्चो का मन मिलना जरूरी होता है, अब नंदू को तो चंपा पसंद आ ही गयी है, मैं भी चंपा से पूछकर आप तक खबर भिजवा दूँगा, नारायण आता जाता रहता है, अगर बात बन गयी तो इनकी जन्म कुंडली देखकर कोई मुहरर्त निकलवा लेंगे,लेकिन अभी तत्काल कुछ कह नही सकते।"

"जो भी फैसला हो जल्दी बताना….मै नन्दू की शादी जल्द ही करके अपने सिर का बोझ हल्का करना चाहता हूँ" चिंतामणि बोला।

जबकि नंदू ने बाबूजी की बात काटते हुए कहा- "हमे कोई जल्दी नही है, चम्पा से कहना सोच समझकर फैसला लेना…. हम उसके जवाब का इंतजार करेंगे…"

चिंतामणि और नंदू विदाई लेकर चल पड़े थे, लेकिन नंदू अभी भी चंपाके कमरे में उसके मासूम से चेहरे में गुस्से के भाव को देख रहा था
यमराज नंदू अंकल को खींचते हुए बोला- "अरे, चलो अंकल…. वो सब तो चले गए"

नंदू अंकल ने यमराज से अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा- "रुक जा ना…. मुझे आखिरी बार देखने तो दे चंपा को….अब कौन सा दोबारा देखने को मिलेगी"

"शर्म नही आती….आपकी उम्र अब चंपा को नही गंगा को देखने की हो चुकी है….बूढ़े हो गए लेकिन नजर चंपा पर है अभी भी……अब चलो यहाँ से" यमराज ने कहा।

"यार….समझा कर….तू जा….मैं आ जाऊंगा…."नंदू ने हल्के से चम्पा के गाल को हाथ से छूना चाहा ही था कि यमराज जबरदस्ती खींचकर बाहर की तरफ ले गया।

"हद है यार…. कम से कम गाल पर हाथ तो लगाने देता…." नंदू ने यमराज को डांटते हुए कहा।

"क्यो लगाने देता….जब चंपा को आप पसंद ही नही थे तो मैं क्यो लगाने देता हाथ…." यमराज ने जवाब दिया

"काश की चंपा हाँ कर देती……चम्पा की इस पहली और आखिरी मुलाकात को कभी भूल नही पाया में…. पहले तो उसकी हाँ या ना के इंतजार में महीनों गुजर गए, हमेशा सपने में आता था कि चंपा ने शादी के लिए हां कर दिया है….बहुत बार तो सपने में चम्पा के घर बारात लेकर भी पहुंच जाता था,  सपने इतने मीठे लगने लगे थे कि दिन में सवारी नही मिलने पर गमछा मुंह मे रखकर रिक्शे में ही सो जाता था।
लेकिन फिर एक दिन खबर मिली की चंपा की शादी तो किसी और से हो गयी है,

"ये खबर किसने दी" यमराज ने पूछा।

"जब  हां या ना के जवाब की खबर नही आई तो एक दिन मैं रिक्शा लेकर ही चंपा के घर पहुंच गया, सात महीने जवाब का इंतजार करने के बाद एक दिन में परेशान होकर चंपा के घर ही पहुंच गया। तब मोहन जी ने बताया कि उन्होंने तो एक दो दिन में ही नारायण के हाथ जवाब भेज दिया था, लेकिन शायद नारायण ने जवाब देने का काम आजकल में टालते हुए रहने ही दिया होगा। उसके कुछ दिन बाद उसकी शादी किसी से तय हो गयी और पिछले हफ्ते ही उसकी शादी हुई है, शादी के लड्डू अभी तक बचे थे, लाख मना करने के बाद भी चंपा की शादी के लड्डू मुझे को खिला ही दिया, और चाय पिलाकर विदा कर दिया"  नंदू ने यमराज को बताया।

यमराज इमोशनल होते हुए बोला- "ओह….तब तो आपका दिल ही टूट गया होगा।"

"ह्म्म्म" कहते हुए नंदू  ने अपने आंख से आंसू पोछा।

"अब क्यो रो रहे हो….जो होना था हो गया है" यमराज ने सांत्वना देते हुए कहा।

"दिल तो दुखता है ना, याद तो आती ही है" नंदू अंकल बोला।

"लेकिन आपने सात महीने तक क्यो इंतजार किया, जबकि आपके बाबूजी तो चाहते थे कि वो जल्दी आपकी शादी देखना चाहते है।" यमराज ने सवाल किया।

"वो थोड़ी इंतजार कर रहे थे, उनका लड़की ढूंढना तो चालू ही था….वो कह रहे थे कि उनकी मनाही है, वो नही करना चाहते शादी तभी तो अभी तक जवाब नही भेजा….लेकिन मेरे दिल को इंतजार बस उसी का था। बाबूजी की बात नही सुनी….मैं जब भी आइने में खुद को देखता अपने गोल मटोल चेहरे पर भाव खाते हुए कहता था- वो क्यो इतने सुंदर लड़के को मना करेगी, भगवान ने पैसे और नौकरी भले ही नही दी अच्छी लेकिन चेहरा तो मनमोहक है मेरा।" नंदू ने कहा।

"और फिर वो भरम भी टूट गया होगा, है ना" हँसते हुए यमराज बोला।

इस बात पर गोल मटोल नंदू अंकल भी हँस पड़ा।

"अब अगली लड़की देखने कब जाओगे…" यमराज ने सवाल किया।

"अब मैं जाऊंगा ही नही, बाबूजी जिससे बोलेंगे, आंख बंद करके शादी कर लूंगा" नंदू ने कहा।

"पहले  भी बाबूजी ने जिससे कहा उसी से कर रहे थे, कौन सा आपने मना किया, वो तो लड़की को पसंद नही आये आप" यमराज बोला।

"ओ हेलो….लड़की को मैं बहुत पसंद था….लेकिन मेरा रिक्शेवाला होना नही पसंद था…." नंदू अंकल ने कहा।

"तो इस बार कौन सा ट्रेन चला रहे हो, इस बार भी रिक्शे वाले ही हो" यमराज बोला।

"बाबूजी ने कहा कि किसी कंपनी में काम करता हूँ बोल देना….वैसे भी लड़की वाले बहुत दूर है, और बिचौली भी अच्छा है, उसी ने ये तरीका बताया है" नंदू अंकल बोला।

"तो आप बोलोगे झूठ" यमराज ने कहा।

"जब जब बाबूजी की बात नही मानी है, पछताया हूँ मैं बहुत, इस बार सब उनपर छोड़ दिया है" नंदू ने कहा।

"चलो ठीक है……देखते है आपकी शादी होती भी है या नहीं" यमराज बोला।

"ये कोई तरीका नही है सस्पेंस में रखने का….सब जानते है शादी होती है मेरी….बस ये नही जानते किससे  होती है और कैसे होती है" नंदू ने यमराज को डांटते हुए कहा।

"चलो ठीक है महाराज, सस्पेंस में रखना आप जानते हो….मुझे नही अनुभव….अब आप यमराज को सस्पेंस में रख सकते हो तो बाकियों को रखना आपके लिए कहाँ मुश्किल है" यमराज ने कहा।

"पहली बार तुमने मेरी तारीफ की…. उसके लिए शुक्रिया" नंदू ने यमराज से कहा।

"शुक्रिया से काम नही चलेगा….बस ये बता दो बुढ़ापे में फांसी क्यो लगाई" यमराज अचानक बोला ताकि अचानक नंदू कन्फ्यूजन में आकर बता दे, 

"वो तो इसलिए क्योकि……….एक मिनट…… एक मिनट…. मेरी कहानी इतनी बोरिंग है क्या जो हर बार डायरेक्ट एंड में छलांग मारने की सोचते हो" नंदू ने यमराज से कहा।

"नही इंटरेस्टिंग भी नही है, बोरिंग भी नही…. थोड़ी कंफ्यूजन में हूँ मैं भी सबकी तरह😂" यमराज ने कहा।

"और मुझे भी कंफ्यूज करने की कोशिश करते हो…लेकिन जितना बेवकूफ में शक्ल से लगता हूँ उतना हूँ नही लेकिन" नंदू ने कहा।

"चलो जो भी है….अब आगे बढ़ते है.." यमराज ने कहा
और नंदू ने अपनी कहानी आगे बढ़ाना जारी किया।

कहानी जारी है


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2 Comments

Khan sss

29-Nov-2021 07:22 PM

Wow

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Miss Lipsa

06-Sep-2021 12:28 AM

Wow

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